
जबलपुर। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने जबलपुर में नाले के गंदे पानी से सब्जियां उगाए जाने के रवैये को आड़े हाथों लिया। कोर्ट ने समाचारों पर संज्ञान लेते हुए मामले की जनहित याचिका के रूप में सुनवाई प्रारंभ की। इसी के साथ कलेक्टर सहित अन्य काे नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया। इस प्रकरण में काेर्ट मित्र के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर को नियुक्त किया गया है। उन्होंने दलील दी कि सीवेज की गंदगी के साथ सबसे अधिक पानी डिटर्जेंट का ही होता है। विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि गंदे नालों का पानी बेहद खतरनाक है। इसलिए उनके पानी से सब्जी उगाना जनता की सेहत से सरासर खिलवाड़ है।
जबलपुर में कछपुरा व विजय नगर से लेकर कचनारी व आसपास के क्षेत्र में ओमती नाले के गंदे पानी से सब्जी उगाई जाती हैं। इसी तरह गोहलपुर से लेकर बेलखाड़ू के बघौड़ा व आसपास के कुछ गांवों में मोती नाले के संक्रमित पानी का उपयोग सब्जियों की खेती में किया जा रहा है। हाई कोर्ट को अवगत कराया गया कि कांचघर की पहाड़ियों के पास से निकला ओमती नाला कभी ओमवती नदी के नाम से जाना जाता था। कालांतर में इसके दोनों तरफ आबादी बढ़ती चली गई और यह शहर के बीच में आ गया। अब केवल सेप्टिक टैंकों और बाथरूम से निकलने वाला पानी ही बहता है। यही हालात गोहलपुर क्षेत्र से गुजरे मोती नाले के हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन नालों का पानी बेहद खतरनाक और जहरीला हो सकता है।
कैंसर का खतरा
दलील दी गई कि नालों में सीवेज की गंदगी के साथ सबसे अधिक पानी डिटर्जेंट का ही होता है। डिटर्जेंट में भी सोडियम कार्बोनेट मिला होता है इससे हाइपरटेंशन, पोटेशियम की कमी, गैस और सूजन, सिरदर्द और एलर्जी जैसे रोग होते हैं। वहीं डिटर्जेंट में झाग बनाने के लिए सोडियम लारेथ सल्फेट का उपयोग होता है जिससे त्वचा में जलन, मुंहासे, मुंह के छाले और कैंसर भी हो सकता है। डिटर्जेंट में दाग हटाने के लिए एल्काइल बेंजीन सल्फोनेट का उपयोग बेहद किया जाता है। इससे कपड़ों के दाग तो हट जाते हैं लेकिन यह प्रकृति के लिए खुद एक बदनुमा दाग है, क्योंकि इससे पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान होता है। यह बायोडिग्रेबल नहीं है और हमेशा ही जमीन पर बना रहता है, जिससे पानी और मिट्टी को नुकसान होता है। पानी की गुणवत्ता में कमी आती है और मिट्टी अपनी उर्वरता खो देती है।
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