मध्य प्रदेश में कोरोना वायरस के मामले एक बार फिर धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं। सोमवार को इंदौर में दो नए मरीज़ मिलने के साथ ही शहर में कुल सक्रिय मामलों की संख्या 14 हो गई है, जो पूरे प्रदेश में सबसे ज़्यादा है। प्रदेश भर में अब तक कुल 25 मामले दर्ज किए गए हैं।
यह राहत की बात है कि नए मरीज़ों में लक्षण हल्के हैं और वे घर पर ही स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, इंदौर के दो निवासियों समेत कुल पांच मरीज़ ठीक होकर डिस्चार्ज भी हो चुके हैं। संपर्क में आए लोगों की पहचान (कांटेक्ट ट्रेसिंग) भी पूरी कर ली गई है और सभी पॉजिटिव सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे गए हैं।
लेकिन इन सब सामान्य प्रक्रियाओं के बीच, जो बात सबसे ज़्यादा चिंता पैदा करती है, वह है जीनोम सीक्वेंसिंग की बेहद धीमी और लचर व्यवस्था। यह जानना हैरान करने वाला है कि हफ्तों पहले भोपाल एम्स भेजे गए सैंपलों की जीनोम सीक्वेंसिंग रिपोर्ट अब तक नहीं मिली है। इसके अभाव में, स्वास्थ्य विभाग फिलहाल केवल अनुमान के आधार पर ही मान रहा है कि ओमिक्रॉन का सब-वैरिएंट जेएन.1 ही फैल रहा होगा।
इससे भी ज़्यादा गंभीर और चौंकाने वाली स्थिति इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज की है। यहां जीनोम सीक्वेंसिंग लैब पिछले लगभग तीन सालों से बंद पड़ी है। विडंबना देखिए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा दी गई करीब 60 लाख रुपये की महंगी सीक्वेंसिंग मशीन नवंबर 2022 में स्थापित तो कर दी गई, लेकिन ज़रूरी केमिकल (रिएजेंट) और किट की सप्लाई न होने के कारण वह आज तक शुरू नहीं हो पाई है। यह स्थिति न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि महामारी से लड़ने की हमारी तैयारियों पर भी एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है।
जीनोम सीक्वेंसिंग इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे वायरस के बदलते स्वरूप, यानी नए वेरिएंट्स का पता चलता है। यह जानकारी हमें यह समझने में मदद करती है कि कौन सा वेरिएंट कितना संक्रामक है, कितना घातक हो सकता है और मौजूदा वैक्सीन उस पर कितनी प्रभावी है। अगर हमें वेरिएंट का ही पता नहीं होगा, तो हमारी आगे की रणनीति और तैयारी कैसे पुख्ता हो सकती है?
भले ही अभी कोरोना के मामले कम हैं, लेकिन यह समय लापरवाह होने का नहीं, बल्कि अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों की कमियों को दूर करने का है। एक तरफ गुजरात मूल के मरीज़ इंदौर में टेस्ट करवा रहे हैं, और दूसरी तरफ शहर की अपनी महत्वपूर्ण लैब धूल फांक रही है। यह विरोधाभास हमारी गंभीरता पर सवाल उठाता है। अधिकारियों को तत्काल इस दिशा में कदम उठाने चाहिए। इंदौर की जीनोम सीक्वेंसिंग लैब को जल्द से जल्द क्रियाशील बनाना और भोपाल से रिपोर्ट मिलने की प्रक्रिया में तेज़ी लाना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। आम जनता को भी घबराने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन कोविड उपयुक्त व्यवहार जैसे कि भीड़ में सावधानी बरतना और लक्षण दिखने पर जांच करवाना, अभी भी महत्वपूर्ण है।
कोरोना अभी पूरी तरह गया नहीं है। कम मामले हमें तैयारियों को मज़बूत करने का अवसर देते हैं, न कि उन्हें नज़रअंदाज़ करने का। स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में किसी भी संभावित लहर का सामना करने के लिए हम वैज्ञानिक रूप से और संसाधनों की दृष्टि से पूरी तरह तैयार रहें।
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