
खुशी टाइम्स\जबलपुर। जबलपुर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित ऐतिहासिक जमतरा नैरोगेज पुल को लेकर रेलवे की तोड़फोड़ योजना ने स्थानीय ग्रामीणों के बीच नाराज़गी और विरोध की लहर खड़ी कर दी है। यह वही पुल है, जिससे कभी जबलपुर से बालाघाट तक नैरोगेज ट्रेन गुजरा करती थी। वर्ष 2015 में ट्रेन सेवा बंद होने के बाद अब रेलवे ने इसे “खतरनाक” घोषित कर तोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
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दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के अनुसार, यह पुल अब निष्क्रिय है और इसकी हालत इतनी खराब हो चुकी है कि कभी भी गंभीर दुर्घटना हो सकती है। अधिकारियों ने इसे स्क्रैप घोषित कर पुल के दोनों छोर पर लोहे के बैरिकेड्स भी लगा दिए हैं। रेलवे का कहना है कि जन-सुरक्षा को देखते हुए पुल को गिराना जरूरी है। लेकिन ग्रामीणों के लिए यह पुल आज भी उनके जीवन का हिस्सा है। ट्रेनों का संचालन बंद होने के बाद से ग्रामीणों ने इस पुल को आवागमन के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।देवरी, बहोरीपार, मोहस, डूंगरिया, खिरहनी, बढ़ियाखेड़ा, निगरी और खमरिया जैसे दर्जनों गांवों के लोग मोटरसाइकिल और पैदल इसी पुल से जबलपुर शहर पहुंचते हैं। पुल के टूटने पर इन्हें तिलवारा या चूल्हा गोलाई होकर करीब 25 किलोमीटर का अतिरिक्त चक्कर लगाना पड़ेगा। स्थानीय लोगों की मांग है कि इस पुल को तोड़ने की बजाय मरम्मत कर पैदल व दोपहिया वाहनों के लिए सुरक्षित बनाया जाए। ग्रामीण कमलेश पटेल और दिलीप कुमार सहित कई अन्य लोगों का कहना है कि यह अंग्रेजों के जमाने की धरोहर है, जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि यह केवल प्रशासन की अनदेखी है, जो पुल की यह हालत हुई है।
यह कोई पहली बार नहीं है जब पुल तोड़ने की कोशिश हो रही है। वर्ष 2021 में भी जब इसे हटाने का प्रयास किया गया था, तब ग्रामीणों के भारी विरोध के कारण काम रोक दिया गया था। अब एक बार फिर वही स्थिति उत्पन्न हो गई है। पुल के भविष्य को लेकर प्रशासन और ग्रामीणों के बीच टकराव की स्थिति बन गई है। जहां रेलवे इसे “जनहित में जरूरी फैसला” बता रहा है, वहीं ग्रामीण इसे “सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत” मानते हुए संरक्षित करने की मांग कर रहे हैं। फिलहाल, ग्रामीणों ने आंदोलन की चेतावनी दी है और स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
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