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महिलाओं को फटकार लगाई, जुर्माने का भी आदेश, हाईकोर्ट से हैरान करने वाला मामला


पूर्व पतियों के खिलाफ क्रूरता में केस दर्ज कराया था। नई दिल्ली: पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने हाल ही में दो अलग-अलग मामलों की सुनवाई करते हुए दो महिलाओं पर जुर्माना लगाया। इन महिलाओं ने अपने पूर्व पतियों के खिलाफ क्रूरता में केस दर्ज कराया था। हाई कोर्ट इनके पूर्व पतियों की अर्जी पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि दोनों पक्षों में वैवाहित विवाद का निपटान हो चुका है और दोनों महिलाओं ने गुजारा भत्ता भी स्वीकार कर लिया है लेकिन, पूर्व पतियों के खिलाफ केस वापस नहीं लिया है। जिस पर हाई कोर्ट ने दोनों महिलाओं को फटकार लगाई और जुर्माने का आदेश जारी किया।

न्यायमूर्ति सुमीत गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 1 मई और 15 मई के दो अलग-अलग मामलों में यह आदेश पारित किया। हाई कोर्ट ने दोनों महिलाओं पर 40 हजार और 25 हजार का जुर्माना लगाने का आदेश दिया। कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि कानूनी कार्यवाही में देरी के लिए महिलाओं के मन में कड़वाहट की भावना उचित नहीं है। दोनों पक्षों के बीच समझौता हो चुका है, बावजूद इसके दोनों महिलाएं पूर्व पतियों के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार कर रही हैं।

बार एंड बेंच में छपि खबर के मुताबिक, दरअसल, इन महिलाओं के पूर्व पतियों ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। धारा 498 ए में किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना शामिल होता है। अदालत को बताया गया कि दोनों मामलों में, पतियों और पत्नियों के बीच वैवाहिक विवादों में समझौता हो गया है और महिलाओं को तलाक के साथ ही पूर्ण और अंतिम निपटान की राशि का भुगतान भी कर दिया गया है।

अदालत में सुनवाई के दौरान एक महिला नोटिस के बावजूद पेश नहीं हुई। वहीं दूसरे मामले में महिला की तरफ से वकील ने दावा किया कि वैवाहित विवादों के निपटान वाला हलफनामा जाली दस्तावेज था। कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि दोनों मामलों में महिलाओं को समझौते का लाभ मिला है और तलाक के आदेश भी पारित हो गए हैं। 

कोर्ट ने कहा, “एक बेतुके दावे के अलावा, दूसरे प्रतिवादी द्वारा उठाए गए विवाद का समर्थन करने के लिए ऐसा कोई ठोस सबूत सामने नहीं लाया गया कि हलफनामा एक जाली दस्तावेज है। हलफनामा दर्शाता है कि दोनों पक्षों में मामला सुलझा लिया गया था। यह भी विवाद में नहीं है कि प्रतिवादी नंबर दो द्वारा संबंधित पारिवारिक न्यायालय के समक्ष आज तक इस तरह की कोई याचिका नहीं उठाई गई कि तलाक का आदेश धोखाधड़ी, जबरदस्ती या गलत तरीकों के कारण पारित किया गया है।

अदालत ने कहा कि कानूनी कार्यवाही के लिए एफआईआर को जारी रखना कानूनी प्रक्रिया की नजर में सरासर दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं होगा। इसके बाद पीठ ने 1973 की सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए मामले को रद्द कर दिया और दोनों महिलाओं पर जुर्माना लगाने के आदेश दिए। गौरतलब है कि अदालत ने पिछले महीने इसी तरह के एक मामले में एक महिला पर ₹50,000 का जुर्माना भी लगाया था। महिला पर अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता के रूप में ₹22 लाख लेने के बाद भी वैवाहिक विवाद के निपटारा करने में आनाकानी करने और मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज नहीं कराने का आरोप था।

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